Ganne ki new kisham 13235 ,13452,10239,co0238

गन्ने की ती नई किस्मों की हुई खोज, बदल सकती है किसानों की तकदीर शाहजहांपुर के गन्ना शोध संस्थान के 10 साल के लंबे रिसर्च के बाद विकसित हुई इन किस्मों को लेकर वैज्ञानिकों का मानना है कि इस रिसर्च से गन्ना किसानों और शुगर मिलों को बड़ीरोगमुक्त तीनों ही गन्ने की किस्में चीनी की रिकॉर्ड तोड़ रिकवरी देगीहर तरह की मिट्टी में गन्ने की किस्में उगाई जा सकेगी सुबह की चाय हो, केक, पेस्ट्री या मिठाई. दुनिया भर में लगभग हर खाद्य पदार्थों में लोग चीनी (शक्कर) का इस्तेमाल जरूर करते हैं. जो चीनी लोगों के खाने में मिठास घोलती है वह बनती है गन्ने से. जिसके उत्पादन में भारत दुनिया भर में दूसरे स्थान पर है. अब भारत की गन्ना उत्पादन की कामयाबी में और पंख लग गए हैं. दरअसल, उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर के गन्ना शोध संस्थान के वैज्ञानिकों ने गन्ने की तीन नई किस्में विकसित की हैं. 10 साल के लंबे रिसर्च के बाद विकसित हुई इन किस्मों को लेकर वैज्ञानिकों का मानना है कि इस रिसर्च से गन्ना किसानों और शुगर मिलों को बड़ी राहत मिलेगी. इस बारे में शाहजहांपुर के गन्ना शोध संस्थान के डायरेक्टर डॉक्टर ज्योत्सनेंद्र सिंह ने कहा कि जिन गन्ने की तीन नई किस्मों की खोज की गई है उसमें खास बात यह है कि रोगमुक्त तीनों ही गन्ने की किस्में चीनी की रिकॉर्ड तोड़ रिकवरी देगी साथ ही हर तरह की मिट्टी में गन्ने की किस्में उगाई जा सकेगीकौन-कौन सी हैं गन्ने की तीन नई किस्में... गन्ना शोध संस्थान के डायरेक्टर डॉक्टर ज्योत्सनेंद्र सिंह ने बताया कि गन्ना शोध संस्थान के वैज्ञानिकों ने कोसा 13235, कोसा 13452 और कोसा 10239 किस्में विकसित की हैं. क्या खासियत है... - को.से 13452: यह मध्यम देर से पकने वाला गन्ना है. 86 से 95 टन प्रति हेक्टेयर इसकी पैदावार होगी. इसमें व्यावसायिक शर्करा उपज 12.08 पाया गया है. - को.से 13235: वैज्ञानिकों का मानना है कि को.से 13235 किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है. क्योंकि बाकी गन्नों की तुलना में यह शीघ्र पकने वाला गन्ना है. इसकी उपज 81 से 92 टन प्रति हेक्टेयर है. इसके व्यावसायिक शर्करा की बात की जाए इसमें 11.55 पाया गया है. इसकी फसल 10 माह में पक कर तैयार हो जाती है. - को.से 10239: यह मध्यम देर से पकने वाला गन्ना है. जल भराव की स्थिति में इसकी पैदावार 63 से 79 टन प्रति हेक्टेयर होती है. ऊसर या बंजर जमीन पर इसकी पैदावार 61 से 70 टन पाई गई है. यही नहीं, खास बात यह है कि इन तीनों ही किस्मों में कीट और रोगों के प्रकोप शून्य है.रोगमुक्त गन्ने की किस्म.... डॉक्टर ज्योत्सनेंद्र सिंह ने बताया कि कुछ समय पहले तक किसानों के बीच co 0238 किस्म का गन्ना काफी मशहूर था. क्योंकि इस किस्म से किसान और शुगर मिलों को अच्छा फायदा होता था. इस कारण किसानों ने जरूरत से ज्यादा इसकी खेती की. नतीजा यह हुआ कि co 0238 गन्ने की खेती ज्यादा होने के कारण इसकी अच्छी कीमत मिलना बंद हो गई. साथ ही इस किस्म में लाल सड़न रोग (Red Rot Disease) फ़ैल गया और किसानों को भारी नुकसान हुआ. इस स्थिति को देखते हुए गन्ना शोध संस्थान के वैज्ञानिकों ने तीन नई किस्में तैयार कीं जिनके बारे में कहा जा रहा है कि ये किस्में फिलहाल रोगमुक्त हैं. गन्नों को तबाह कर देता है लाल सड़न रोग.... गन्ने की फसल अक्सर लाल सड़न रोग (Red Rot Disease) के चपेट में आकर तबाह हो जाती है. डॉक्टर ज्योत्सनेंद्र सिंह ने बताया कि लाल सडन रोग गन्ने को पूरी तरह सुखा देता है. लाल सडन रोग के पीछे फंगस जिम्मेदार होता है. इससे गन्ने में लाल चित्ते पड़ जाते हैं और सिरके जैसी महक आने लगती है जिससे धीरे-धीरे यह पूरी खेती को सुखा देता है.गौरतलब है कि गन्‍ना, भारत की एक प्रमुख नकदी फसल है. इसकी खेती अर्ध उष्‍णकटिबंधीय तथा कटिबंधीय क्षेत्रों में होती है. जानकारों का कहना है कि भारत में लगभग 5 मिलियन हेक्टेयर से भी अधिक क्षेत्रफल में गन्ना की खेती होती है. इसमें सबसे ज्यादा गन्ना उत्तर प्रदेश में होता है. देश का लगभग 50 प्रतिशत से ज्यादा गन्ना उत्तर प्रदेश में ही होता है. इन राज्यों में होती है गन्ना खेती... गन्ना खेती को पांच जोन में बांटा गया है. इसमें शामिल हैं नॉर्थ वेस्ट जोन, नॉर्थ सेंट्रल ज़ोन, नॉर्थ ईस्टर्न जोन, पेनिनसुलर जोन और कोस्टल ज़ोन. इन सभी जोन में गन्ने की सबसे अधिक पैदावार अर्ध उष्‍णकटिबंधीय क्षेत्र में होती है. बताया जाता है कि भारत में गन्‍ने की खेती का 55 प्रतिशत से भी हिस्सा उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, पंजाब से आता है. जबकि बाकी हिस्सा महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, गोवा, पुडुचेरी से आता है.

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