GM masterd कैसे अलग है और सरसो से।।,

Technologe modified सरसों कोDMH-11 के नाम से भी जाना जाता है। Indian (भारतीय )किस्म वरुणा की kroshing (क्रॉसिंग )पूर्वी यूरोप की किस्म अर्ली Heera –2 से कराकर तैयार किया गया है. दावा किया जा रहा है कि इसकी उपज सामान्य सरसों से लगभग 30 प्रतिशत ज्यादा है। हालांकि, अब इसे मिली मंजूरी को लेकर विरोध भी शुरू हो गया है।।

केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के बायोटेक नियामक जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी ने जेनेटिकली मॉडिफाइड सरसों की व्यवसायिक खेती को मंजूरी दे चुकी है। कमेटी के इस फैसले के बाद से ही कई किसान समूहों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है. कहा जा रहा है कि जीएम सरसों के सेवन से स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा. इसके अलावा शहद उत्पादन का व्यवसाय पूरी तरह से ठप हो जाएगा। मधुमक्खी पालन से जुड़े किसान बड़ी संख्या में बेरोजगार होंगे। दावा ये भी किया जा रहा है ,कि शहद के निर्यात में बहुत बड़ी गिरावट आ सकती है। दरअसल, चिकित्सकीय गुणों की वजह जीएम मुक्त सरसों के शहद की मांग विदेशों में ज्यादा है।

१. जीएम तकनीक क्या हैं?

इस तकनीक के जरिए जीव या पौधों के जीन को दूसरे पौधों में डाल कर फसल की एक नई प्रजाति विकसित की जाती है।  जीन में परिवर्तन बायॉटेक्नॉलजी और बायो इंजिनियरिंग के जरिए की जाती है। सबसे पहले इस तरह की तकनीक का प्रयोग 1982 में किया गया था. इस वक्त कई देशों में इस तकनीक के जरिए खेती की शुरुआत हो चुकी है।

२.क्या हैं जीएम सरसों कि फसल ?

जेनेटिकली मॉडीफाइड सरसों को डीएमएच-11 के नाम से भी जाना जाता है। इसे दिल्ली विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स (सीजीएमसीपी) द्वारा पूर्व वाइस चांसलर दीपक पेंटल के नेतृत्व विकसित किया गया था।

३.देखते है,कैसे तैयार किया जाता है जीएम सरसों का पौधा?

इस तकनीक में पौधे की दो अलग-अलग किस्मों को मिलाकर संकर या हाइब्रिड वैरायटी तैयार करते हैं। माना जाता है कि इन हाइब्रिड किस्मों की उत्पादन क्षमता ज्यादा होती है। जीएम मस्टर्ड को भारतीय किस्म वरुणा की क्रॉसिंग पूर्वी यूरोप की किस्म अर्ली हीरा – 2 से करा कर तैयार किया गया है। दावा किया गया है कि DMH-11 की उपज वरुणा से 28 प्रतिशत ज्यादा पाई गई। सरकार की मानें तो इससे खाद्यान तेलों का निर्यात में भी तेजी से इजाफा होगा।

जीएम सरसों से इतर आम सरसों की खेती के लिए दो किस्मों को हाइब्रिड प्रकिया से नहीं गुजरना पड़ता है। आपने सरसों की जिन किस्मों की बुवाई की है, उसी के दाने को बुवाई के लिए बीज के तौर पर उपयोग कर सकते हैं।

कृषि वैज्ञानिक दया श्रीवास्तवा वर्तमान परिस्थिति में ये बहुत ज्यादा यील्डिंग वैरायटी नहीं है। बीटी कपास की खेती में भी देखा गया है, इसका फायदा किसानों को पहुंचा नहीं है। इसका फायदा बिचौलिए ले जाते हैं।अगर किसान की आय बढ़ाना है तो उन्हें जागरूक करने और जमीन की उत्पादकता बढ़ावा करने से होगा।

जीएम सरसों को लेकर अभी इस तरह का कोई रिसर्च नहीं हुआ है. इसे कब लगाना है, कैसे लगाना है,  इस बारे में जानकारी नहीं है. ऐसे में अगर क्रॉप फेल्योर होगा तो इसे संभालना मुश्किल हो जाएगा। अभी जितनी वैरायटी उपलब्ध है, उसी के बारे में किसानों को सही जानकारी उपलब्ध दे दी जाए तो उत्पादकता में इजाफा हो जा सकता है।

४.सरकार के इन दावों से कृषि विशेषज्ञ नहीं हैं सहमत। किसान रहे सावधान!

हालांकि, खाद्य और व्यापार नीति विशेषज्ञ देविंदर शर्मा  इस दावे को नहीं मानते हैं। उनका कहना है भारत में डीएमएच-11 से भी ज्यादा उपज देने वाली सरसों की कम से कम  4 वैरायटीज मौजूद हैं। डीएमएच-1, डीएमएच-2, डीएमएच-3, डीएमएच-4 सरसों की वैरायटी की पैदावार जीएम सरसों से ज्यादा है. वह आगे कहते हैं कि सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स, यूनिवर्सिटी ऑफ दिल्ली साउथ कैंपस के एक वैज्ञानिक द्वारा की गई एक प्रस्तुति में भी ये दिखाया गया है कि उच्च उत्पादकता वाली सरसों की चार किस्में पहले से मौजूद हैं।

तीन किस्में एक ही डीएमएच श्रृंखला की हैं. डीएमएच -4, जो एक पारंपरिक किस्म है, जीएम सरसों की तुलना में 14.7 प्रतिशत अधिक उपज प्रदान करती है. पायनियर और एडवांटा द्वारा उत्पादित दो और किस्में भी जीएम सरसों से ज्यादा उपज देती हैं।

५.बहुत बड़े ट्रायल की जरूरत हैं, इस प्रकार की खेती के लिए,*

दया शंकर श्रीवास्तव कहते हैं कि इसकी खेती के लिए अभी वैलिडेटेशन ट्रायल की जरूरत है। अभी इस बारे में कोई रिसर्च नहीं उपलब्ध है कि इंसानों से लेकर जानवरों तक पर इसका क्या असर होने वाला है। जल्दबाजी में इसकी खेती करना सही नहीं है। जानवर सरसों की खाल का चारे के तौर पर इस्तेमाल करते हैं. वहीं, मछलियों के चारे के तौर पर भी इसका उपयोग किया जाता है। ऐसे में पर्यावरण का संतुलन बिगड़ सकता है। किसानों अभी नॉर्मल फसलों के लिए जागरूक करना चाहिए. फसलों के लिए बेसिक बदलावों के बारे में जानकारी देने की आवश्यकता है। अगर जीएम सरसों की खेती शुरू भी करनी है तो इसके लिए बहुत बड़े ट्रायल की जरूरत है।


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